जब से पांव हमारे चादर के अन्दर
हो गये
हम तो बिना जंग के ही सिकन्दर
हो गये
॰॰
जमें से कतरे मेहनत के ही पास
थे अपने
ऐसे घुले, घुलकर कतरे भी समन्दर
हो गये
॰॰
जब से पाया धीरज का नन्हा सा मोती
यहां
कुछ न बदला, बस पापी से कलन्दर
हो गये
॰॰
जरा हिम्मत कर देख, पतंग की डोरियां
भी
तूफान में कश्ती को बाधंने के
लगंर हो गये
॰॰
बुरे के खिलाफ बोलना ही जिम्मेदारी
है अपनी
शायर नही है, जो गांधी जी के बन्दर
हो गये
॰॰
कर यकीन खुद पे, बन्दो की पनाह
छोडी जब
अपने आप ऊपर वाले की छ्तरी अन्दर
हो गये
-जितेन्द्र तायल
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जब से पाँव हमारे चादर के अन्दर हो गये
ReplyDeleteहम तो बिना जंग के ही सिकन्दर हो गये।
आवश्यकता और संसाधन में सामंजस्य बना लेने पर हर कोई सिकन्दर बन सकता है।इसी को बड़ी खूबसूरती के साथ आप नें ग़ज़ल के शेर ढ़ाला है।बहुत खूब सर।बेहतरीन ग़ज़ल ।
बहुत आभार आदरणीय
Deleteजरा हिम्मत कर देख, पतंग की डोरियां भी
ReplyDeleteतूफान में कश्ती को बाधंने के लगंर हो गये
बहुत खूब .. असल बात हिम्मत की है ... होंसले की है ... मुमकिन सब कुछ है इंसान के लिए ...
हर शेर लाजवाब ...
आप मित्रगणो का उत्साहवर्धन ही लेखनी की प्रेरणा है
Deleteसभी शेर उम्दा ......सादर
ReplyDeleteजरा हिम्मत कर देख, पतंग की डोरियां भी
तूफान में कश्ती को बाधंने के लगंर हो गये
हार्दिक आभार नमन आदरणीय
Deleteबहुत ख़ूब, सुंदर और भावपूर्ण पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत आभार आदरणीय
Deletebahut sunder likha hai aapne
ReplyDeleteबहुत आभार आदरणीया
Deleteबहुत शानदार प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर नमन आदरणीया
Deleteबेहतरीन लिखा है, पढ़कर आननद आ गया।
ReplyDelete......शानदार रचना
उत्साह वर्धन का बहुत शुक्रिया
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