Monday, 1 June 2015

काला धन - जनता की नजर में










भाग-१
सेठ जी ने कारोबार जमाया                               
जाने कितनो को उल्लु बनाया

सम्बन्धो को खूब भुनाया
अफसरो को भी खिलाया

साम-दाम-दणं-भेद सब लगाया
कुल मिलाकर खूब माल कमाया

चलते चलते सेठ जी का बेटा बडा हो गया
सेठ जी की पकी फसल सा खडा हो गया

बेटा बोला पिताजी इक बात बताओ आज
अपनी इस कामयाबी का बताओ पूरा राज

सेठ जी बोले बेटे इक बात रखना याद
कोई आये सरकार नही होओगे बर्बाद

छोटी-छोटी बातो पर नही करना खेद
ईमान मे हो जायें चाहे जितने छेद

पैसे पैसे मे न करना कभी कोई भी भेद
पैसा पैसा होता है नही होता काला या सफेद
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भाग-२
एक मजदूर पत्थर तोडता था
टूटी हुई सडको को जोडता था

जब गर्मी मे माथे पर आता पसीना
चमकता था धूप मे जैसे हो नगीना

मेहनत जो की दिहाडी मिलती थी
उसी से उसकी दाल रोटी चलती थी

एक बार उसकी घरवाली ने मन में ठानी
और पुराना टी॰वी॰ घर मंगवा के ही मानी

अब तो इतवार हो या सो्मवार
टी॰वी॰ पर चलता बस चित्रहार

मजदूर ने सोचा एक बार
पढना नही आता अखबार
तो क्यो न सुने समाचार

समाचार मे हो रही थी बहस काले धन की
उसे सुन मजदूर के बच्चे की खोपडी ठनकी

बच्चे ने कहा बापू, क्या होता है काला धन
बापू बोला पता तो नही, पर कहता मेरा मन
और कुछ नही ये है बस राजनीति का फैशन

इतना कह बापू ने पुनः चित्रहार लगाया
और अपने बेटे को यही समझाया

इन चक्करो में हो जायेगे इकलौते जुते मे भी छेद
इसलिये पैसे पैसे मे न करना कभी कोई भी भेद
पैसा पैसा होता है नही होता काला या सफेद


 - जितेन्द्र तायल
 मोब. 9456590120


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15 comments:

  1. बहुत बढ़िया।

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  2. बहुत बढ़िया।

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  3. सच में परिभाषा बदल जाती है ...सुंदर

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    1. जी ठीक कहा आपने मित्रवर

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  4. बहुत ख़ूब...सुंदर व्यंग्य

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  5. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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  6. वाह वाह वाह जितेन्द्र जी
    सच में बहुत सटीक करारा व्यंग्य है। बधाई

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    1. जी दिव्या जी यही स्थिती है आज समाज की
      मुद्दे वही है जिनसे जनता का जुडाव नही है
      फिर भी राजनीति हो रही है

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  7. बहुत ख़ूब...सुंदर सटीक व्यंग्य

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