Saturday 18 July 2015

मेहनत का जहां में .. दूसरा सानी नही











मेहनत का जहां में .. दूसरा सानी नही             
है पसीना खून से बढकर कोई पानी नही
॰॰
भले  ही टूटता हो बदन उसका थकन से
अभी हारा नही है वो, हार उसने मानी नही
॰॰
सर झुका द्रोण का, श्रम था एक्लव्य का
हर किसी का मुकद्दर यहां खानदानी नही
॰॰
खारी पुरवाईयां, गहरी तनहाईयां सब ही हैं यहां
बस मीठे  चश्मे का ही नाम  जिन्दगानी नही
॰॰
   लक्ष्य से दूर हैं, लगते मजबूर हैं
   जब तलक  दिल मे हमने ठानी नही
हाथ थक जायेगा, चोट लग जायेगी
पर पानीयों पे तो तस्वीर बनानी नही


- जितेन्द्र तायल
   मोब. 9456590120

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13 comments:

  1. सकारात्मक उर्जा से भरपूर ग़ज़ल।बहुत खूब सर।

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  2. बहुत सुन्दर और सकारात्मक सोच...

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  3. बहुत ख़ूब...सकारात्मक भाव

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  4. एकलव्य वाला शेर तो बहुत ही कमाल का है ... सभी शेर एक से बढ़ कर एक ...

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  5. प्रोत्साहित करती, जोश से भरी हुई रचना ।

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