जब तक हम लोगो के पैरों में पडे रहते है
सच है की उनकी ही नजरों में गिरे
रहते है
॰॰
फलदार होते है अक्सर जो झुकते
है अदब से
छांव भी नही देते जो अकड कर खडे
रहते है
॰॰
गैरत और अकड में अन्तर है बहुत
थोडा सा ही
जाना जिसने भी, वो अपने पैरो पर
खडे रहते है
॰॰
दिल जीत कर जिन्दा है गांधी आज
भी यहां
जाने कितने हिटलर इस मिट्टी मे
गडे रहते है
॰॰
घर छोड रोजी को, शहर में पीले
गये हम
पेड से जो जुडे रहे, वो ही पत्ते
हरे रहते है
॰॰
बदन पर हीरे जड कर नही आता कोई
दुनिया में
पर जाने के बाद कुछ नाम तो हीरे
से जडे रहते है
॰॰
सुना है हर जख्म भर देता है ये
वक्त का मरहम
पर मरहम लगा भी हमारे जख्म क्यों
हरे रहते है
॰॰
झुलस कर काले हो गये है आग मे
पड कर सब
और चमक कर निखरते है जो सोने खरे
रहते है
जितेन्द्र तायल
मोब. 9456590120
(स्वरचित) कॉपीराईट © 1999 – 2015 Google
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हर शेर कुछ संदेश देता हुआ।खूबसूरत ग़ज़ल।
ReplyDeleteबढ़िया :)
ReplyDeleteआभार जोशी जी
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18 - 06 - 2015 को चर्चा मंच पर नंगी क्या नहाएगी और क्या निचोड़ेगी { चर्चा - 2010 } पर दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बढ़िया
ReplyDeleteदिल जीत कर जिन्दा है गांधी आज भी यहां
ReplyDeleteजाने कितने हिटलर इस मिट्टी मे गडे रहते है ..
जबरदस्त ... बहुत ही प्रभावी बन पड़े हैं सब शेर ... कुछ न कुछ गहरी बात कहते हुए ...
बहुत शुक्रिया मित्र वर
Deleteबेहतरीन अभिब्यक्ति , मन को छूने बाली पँक्तियाँ
ReplyDeleteकभी इधर भी पधारें
बहुत आभार आदरणीय
Deleteआपकी गजलो के तो हम पहले से ही मुरीद है
गैरत और अकड का अंतर खूब बताया.
ReplyDeleteअच्छी गज़ल!
सादर आभार मैम
Deleteउतसाह वर्धन के लिये बहुत आभार आदरणीया
ReplyDeleteबदन पर हीरे जड कर नही आता कोई दुनिया में
ReplyDeleteपर जाने के बाद कुछ नाम तो हीरे से जडे रहते है
इतना लाजवाब लिखा है कुछ कहने के लिए नहीं छोड़ा
आभार
सादर नमन आदरणीया
Deleteदिल जीत कर जिन्दा है गांधी आज भी यहां
ReplyDeleteजाने कितने हिटलर इस मिट्टी मे गडे रहते है...वाह! बहुत ख़ूब
बहुत शुक्रिया मित्रवर
Deleteवाह बहुत बेहतरीन ...
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत गज़ल।
ReplyDeleteबहुत आभार आदरणीया
Deleteप्रभावी हैं सब शेर
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया मित्र वर
Deleteसब बातें गहरी हैंं। सुन्दर।
ReplyDeleteआभार बन्धुवर
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