Friday 27 March 2015

ये बच्चे धनिया बेचते है

ये कविता मेरी पहली कविता है और बस यही कह सकता हु कि इसीलिए मेरे दिल के काफी समीप है चूकि मेरे जीवन के छोटे से अनुभव का कव्यनुवाद है ये , आशा करता हु कि यह कविता आप  लोगो के दिल की समीपता प्राप्त कर पायेगी

ये बच्चे धनिया बेचते है













स्कूल तो कभी गये ही नही है ये,,
हिसाब-किताब,मोल-भाव सब दुनिया से ही सीखते है ..
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ये बच्चे पास की मन्डी मे धनिया बेचते है

घर मे शायद कोई खिलोना मिला ही नही इन्हे,
ये खुद घर भर को अपने पसीने से सीचते है..
...............
ये बच्चे पास की मन्डी मे धनिया बेचते है

चाकलेट-टाफी, चाट-पकोडी की इन्हे जरूरत ही नही
खुद की मेहनत के १० रु को मुट्ठी मे कसकर भीचते है..
... ..........     
ये बच्चे पास की मन्डी मे धनिया बेचते है

मुह से आइस्क्रीम साफ करने को टिशु पेपर नही है इनके पास
ये कमीज की आस्तीन से अपने माथे का पसीना पोछ्ते है...
.....................
ये बच्चे पास की मन्डी मे धनिया बेचते है

पूरी मन्डी ने किया है इनकी मेहनत को सलाम..
मन्डी मे धनिया बेचना है केवल इन्ही काम..
पर ये बच्चे मुझे बच्चो से दीखते है 
......................
ये बच्चे पास की मन्डी मे धनिया बेचते है

शायद इन्हे पता ही नही कि ये बच्चे है 
इस बचपन मे ये खुद मे बडो को खोजते है ..
..................
ये बच्चे पास की मन्डी मे धनिया बेचते है


-जितेन्द्र तायल
 मोब. ९४५६५९०१२०


2 comments:

  1. भावनाओं के कोने से रची गई रचना हमेशा ही दिल को छूती है। बधाई।
    मेरी रचना "छोटू" भी इसी विषय पर है। न जाने हमारे देश में इतने "छोटू" क्यों हैं???????:-(

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    1. आपकी रचना पढी दिल को बहुत छुआ

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