जो दोस्त हो
इस जिन्दगी की शान, मांगता हुं
इक जिन्दा-दिली
का मीठा पान मांगता हुं
बेजान सी जिन्दगी
जी रहा हुं तेरी दुनिया मे
जिन्दा तो हुं,
पर जिन्दगी मे जान मांगता हुं
बस आईने के लिए
अपने जुबान मांगता हुं …………………….
जो जचेगा सिर्फ
मुझपे वो परिधान मांगता हूं
अपनी ही ए-खुदा
असली पहचान मांगता हुं
सच्चे दोस्त
मांगना भी छोड दुंगा मै तुझसे,
बस आईने के लिए
अपने जुबान मांगता हुं
बस आईने के लिए
अपने जुबान मांगता हुं ………………………
काम आये राष्ट्र
के, निज हाथो को वो काम मांगता हुं
गौरव, वैभव,
ज्ञान का ये राष्ट्र हो धाम मांगता हुं
रघुनंदन के चरणो
मे सादर नमन है मेरा लेकिन
न छोडे सीता
को बिन-बात वो राम मांगता हुं
बस आईने के लिए
अपने जुबान मांगता हुं ……………………..
मानव जीवन मे
हो खुशहाली, वो सुबह-शाम मांगता हुं
कुछ करे सत्यार्थ, शब्दो के लियें वो नाम मांगता हुं
सच्चाई के लिये
समर को रहे तैयार हमेशा ये ही
अपनी कलम के
लिये वरदान मांगता हुं
बस आईने के लिए
अपने जुबान मांगता हुं ………………………..
अपने जीवन मे
रष्ट्र प्रेम की मधुर तान मांगता हुं
शमां-ए-वतन पर
ये पतंगा हो, कुर्बान मांगता हुं
बिन राजनीति,
सच्चे अर्थो मे हो समता वास जहां
बस इक ऐसा ही
प्यारा हिन्दुस्तान मांगता हुं
बस आईने के लिए
अपने जुबान मांगता हुं ……………………
*********************************************************
- जितेन्द्र तायल/तायल "जीत"
मोब. ९४५६५९०१२०
This comment has been removed by the author.
ReplyDeletewha2 tayal ji kya khube likha hai .......keep it up
DeleteAnita Singh
सादर आभार @Miley
Deleteरघुनंदन के चरणो मे सादर नमन है मेरा लेकिन
ReplyDeleteन छोडे सीता को बिन-बात वो राम मांगता हुं..
बहुत खूब, तायल जी.
उत्साहवर्धन के लिये सादर आभार
Deleteज्योति जी से पूर्णतया सहमत मुझे भी इन्ही पंक्तियों ने बहुत प्रभावित किया। सुन्दर कृति। बधाई।
ReplyDeleteबहुत आभार डी॰ जे॰
Deleteखूबसूरत कविता।
ReplyDeleteबहुत आभार मित्र वर
Delete