मां
********************************************
**************************************************
सप्तपदी के सब
प्रण पूरे कर, उनका घर तो सवारां है,
पर हर आहट पर
मेरी उन्हे भूल, मुझको ही पुचकारा है
मुझे सुलाने
की खातिर, कितनी राते तो जागी तू है ही
पर मै सो भी
जाऊं तब भी तूने, घन्टो मुझे निहारा है
सारे घर का प्यारा
मै था, सबकी आखों का तारा भी मै था
पर जब भी चोट
लगी तो जाने क्यूं, बस तुझको ही पुकारा है
मेरी खातिर भूखे
रह कर, किये कितने ही व्रत तूने
पर मेरा बदाम
भुलाना, इक बार न तुझको गवारां है
ऐसी उपमा कहां
से लाऊं, के मां तेरा सम्मान बढे
कोई उपमा यहां
लगाना ही, अपमान तुम्हारा है
तेरा उपकार चुकाना
तो, अपने बस की बात नही
तेरे सपनो की
हो भरपाई, तो जीवन सफल हमारा है
****************************************************
****************************************************
-जितेन्द्र तायल/तायल "जीत"
मोब. ९४५६५९०१२०
No comments:
Post a Comment