Thursday, 30 April 2015

डगमग अभी है बोट प्रिये

















कर लो मेरा विश्वास, दिल में नही है खोट प्रिये                
गहने मगंवा दूगां, पर डगमग अभी है बोट प्रिये
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सातो प्रण है याद मुझे, लिये सभी हैं घोट प्रिये
इतना गुस्सा ठीक नही, हो जायेगा विस्फोट प्रिये
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मेरे अन्तर-जन्तर-मन्तर सब तुम्हे रिझाते हैं
छोटा-मोटा नेता मैं, तुम कीमती हो वोट प्रिये
॰॰
चावल-चन्दन-कुमकुम, तुमको मेरे सब अर्पण
लक्ष्मी सेवक हम, तुम हरी-हरी सी नोट प्रिये
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घर की न्याय व्यवस्था में वकील भी तुम
जज भी तुम, बस नही है काला कोट प्रिये
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आज्ञा पालन करते है, गुस्से से ही डरते है
मत उठाओ बेलन ये, लग जायेगी चोट प्रिये


 जितेन्द्र तायल
 मोब. 9456590120

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10 comments:

  1. वाह-वाह! जितेन्द्र जी शानदार मजेदार रचना।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया
      आप गुणीजनो का उत्साह वर्धन ही प्रेरणास्रोत है

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  2. बहुत बढि़या रचना।

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    1. बहुत आभार कहकशां जी

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  3. खूब आनन्द आया पढ़कर।बहुत खूब सर।

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  4. खूब आनन्द आया पढ़कर।बहुत खूब सर।

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  5. खूब आनन्द आया पढ़कर।बहुत खूब सर।

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    1. आप मित्रो के उतसाह वर्धनथी कमल की उर्जा है मित्र वर

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