मै इक आम का पेड हूं
पिन्टू के दादा जी ने उसके जन्म पर प्यार से लगाया था
दादा जी तो मेरे और पिन्टु के जन्म के ६ माह बाद ही चल बसे
पर पिन्टु की मां ने पिन्टु की तरह ही मेरे ख्याल में दिल लगाया था
५ वर्ष का हुआ तो मै जवान और पिन्टु खेलने लायक हो गया
अब पिन्टु मेरे बच्चे जैसा ही था
मेरी गोद मे वो बहुत खेलता था
दोस्तो से लड कर मेरे पास बैठता था
मेरी शाखो पर झूलता था
मेरे आम भी बहुत मीठे थे
सारा घर ही मेरे आम के बिना मौसम मे खाना भी नही खाता था
और पिन्टु तो आम के मौसम मे खाना ही नही खाता था
समय बीतता गया अब पिन्टु मेरे साथ ही बडा हो रहा था
मेडिकल की परिक्षा दे रहा था
परिक्षा के परिणाम की चिन्ता थी किसी से कुछ नही कहता था
पर मेरे पास बैठ कर दिल हल्का करता था
आखिर उसकी मेहनत सफल हो गयी और पिन्टु पढ्ने विदेश चला गया
पिन्टु अब डाक्टर साहब बन गया है, अम्मा जी भी चल बसी
अब डाक्टर साहब को मेरे पास बैठ्ने का समय नही है
अब मै बूढा हो गाया हूं , आम भी नही दे पाता
बेकार हूं, बहुत जोर लगाया सारी नसे दुखने लगी पर आम नही पैदा कर पाया
पर अब भी मै दे सकता हुं पूजा की लकडी, पत्ते और छाया
डाक्टर साहब को भी अब मै फालतु लगने लगा
खैर घर मे खुशियां फिर आयी डाक्टर साहब की शादी डाक्टरनी मैडम से हो गयी
मैड्म ने घर को बडा करने की सोची और ३ कमरो का नक्शा बनवाया
पर मैडम के कमरो के रास्ते मे तो मै आया
अब डाक्टर साहब ने मुझे कट्वाने की ठानी
पर वन विभान वालो ने डाक्टर साहब की न मानी
डाक्टर साहब ने बहुत पैर पट्के पर उनकी न चली
और मैडम के इक कमरे पर वन विभाग की कलम चली
अब मै घर के कोने मे खडा हुं, छाया, पूजा की लकडी, पत्ते देता हूं
डाक्टर साहब का बेटा चिन्टू अब मेरी गोद मे खेलता है
इक दिन नौकरानी ने मेरी शाखो पर डाक्टर साहब के चड्डी- बनियान सुखा दिये
और बस मेरा काम अब चड्डी- बनियान सुखाना ही है
अब एयर कन्डिश्न कमरो वालो के लिये छाया का तो कोई मोल नही है पर
जब भी फैशन को घर मे पूजा हो तो लकडी और पत्ते के लिये मुझे याद किया जाता है
- तायल "जीत"
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