स्वातन्त्रय का फैला चंहु ओर उजियारा है
काले घन हमे अब न इक पल गवांरा है
माना रहनुमा तुम हो अब इसके लेकिन
याद रहे यह कश्मीर हमारा है
जिसने सात-समन्दर पार हाथ पसारा है
६७ वर्षो मे लोकतन्त्र बार-बार नकारा
है
हमें प्रजा अधिकारो का पाठ पढाने
वाले
याद रहे यह कश्मीर हमारा है
जिसने विस्तार-नीति का दिया नजारा है
हडप-नीति मे मित्रों घर भी पांव
पसारा है
सकल विश्व को निम्न माल के ओ
विक्रेता
याद रहे यह कश्मीर हमारा है
जिसने स्वहितार्थ भाईयों का किया
बटवारा है
तेल हडपने हेतु सारी दुनिया मे ही
मुह मारा है
हमको शान्ति, धैर्य, वार्ता का मार्ग
दिखाने वाले
याद रहे यह कश्मीर हमारा है
“वसुधैव कुटुम्बकम” का मूल हमींको
प्यारा है
पर भारत-भू का कोना-कोना घर से
न्यारा है
अमर शहीदो ने इसको स्व-रक्त दे सवारा
है
अपनी धरती को मां मानते है हम ए
दुनियां
याद रहे यह कश्मीर हमारा है
- जितेन्द्र तायल/ तायल "जीत"
मोब. 9456590120
सार्थक प्रस्तुति।
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ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 9-4-15 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1943 में दिया जाएगा
धन्यवाद
सार्थक रचना
ReplyDeleteआप सभी गुणी जनो को सादर नमन
ReplyDeleteसुन्दर देश प्रेम रचना .......बधाई!
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