विदाई
अपने जीवन-अंश
बीज से, नाजुक बेल लगाई
हंसते-गाते खुशियों
मे, आ गयी इसपे तरुनाई
कतरा-कतरा बूटा-बूटा
जोडा, पूंजी येही जमाई
और कुछ है ही
नही, जीवन की है यही कमाई
अब तक जिसको
अपना माना, होने को है पराई
मिल जायेगा इसको
सुवर, आज है इसकी विदाई
दूर होंगे मां-बाबुल
अब, अखियां भी है भर आई
डोली मे लेने
अपने घर, ढेरो खुशियां संग आयी
पुष्प गिरे झोली
मे या-रब , जब ले तू अंगडाई
रूप लक्ष्मी का हो तु , वैभैव हो तेरी परछाई
- जितेन्द्र तायल/ तायल "जीत"
मोब. 9456590120

बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ........आभार!
ReplyDeleteअपका सादर स्वागत है
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